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________________ आहार के १०६ भेद ५०५ ५ मधुर वचन बोल कर (खुशामद करके) आहार की याचना करके लेवे तो। श्री निशीथसूत्र मे बताये हुए ६ दोष १ गृहस्थ के यहा जाकर 'इस बर्तन मे क्या है ?' इस प्रकार पूछ पूछ कर याचना करे तो। २ अनाथ, मजूर के पास से दीनता पूर्वक याचना करके आहार लेवे तो। ३ अन्य तीर्थी (बाबा-साध) की भिक्षा मे से याचकर आहार लेवे तो। ४ पासत्था (शिथिलाचारी) के पास से याचकर लेवे तो। ५ जैन मुनियो की दुर्गछा करने वाले कुल मे आहार ,, ६ मकान की आज्ञा देनेवाले को (शय्यान्तर) साथ लेकर उसकी दलाली से आहार लेवे तो। श्री दशाश्रु त स्कन्ध सूत्र मे बताये हुए २ दोष १ बालक निमित्त बनाया हुआ आहार लेवे तो। २ गर्भवती , " " " श्री वृहत्कल्पसूत्र मे बताया हुआ १ दोष १ चार प्रकार का आहार रात्रि को वासी रख कर दूसरे रोज भोगवे तो दोष। एव ४२+५+२+२३+८+१२+५+६+२+१=१०६ । इनमे ५ माडला का और १०१ गोचरी का दोप जानना। 06 -
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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