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________________ ५०३ आहार के १०६ भेद १२ बाबा साधु के लिए बनाया हुआ आहार लेवे तो । १३ राजपिण्ड ( रईसानी - बलिष्ट) आहार लेवे तो । १४ शय्यान्तर - पिंड मकानदाता के यहाँ से लेवे तो । १५ नित्य - पिंड हमेशा एक ही घर से आहार लेवे तो । १६ पृथ्वी आदि सचित्त चीजो से लगा हुआ लेवे तो । १७ इच्छा पूर्ण करने वाली दानशालाओ से आहार लेवे तो । १८ तुच्छ वस्तु ( कम खाने मे आवे और अधिक परठनी पड़े ) गोचरी मे लेवे तो । १६ आहार देने के पहिले सचित्त पानी से हाथ धोया होवे तथा वहोराने के बाद सचित्त पानी से हाथ धोवे तो । २० निषिद्ध कुल ( मद्य मासादि अभक्ष्य भोजी ) का आहार लेवे तो । २१ अप्रतीतकारी ( स्त्री-पुरुष दुराचारी हो, ऐसे कुल का ) आहार लेवे तो । २२ जिसने अपने घर पर आने के लिये मना किया होवे ऐसे गृहस्थ के घर का आहार लेवे तो । २३ मदिरादि वस्तु की गोचरी करे तो महादोष है । श्री आचारांग सूत्र मे बताये हुए ८ दोष १ मेहमान निमित्त बनाये हुए आहार मे से उनके जीमने के पहिले आहार लेवे तो । २ त्रस जीवो का मास ( जो सर्वथा निषिद्ध है) लेवे तो महादोष । ३ पुण्यार्थ धन-धान्य मे से बनाया हुआ आहार लेवे तो ४ रसोई (ज्योनार - जीमनवार) मे से आहार लेवे तो । ५ जिस घर पर बहुत से भिखारी भोजनार्थी इकट्ठे हुए हों उस घर मे से आहार लेवे तो । ६ गरम आहार को फूंक देकर वहोराया हुआ । }
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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