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आहार के १०६ भेद
अब दश दोष नीचे लिखे जाते है, जो साधु और गृहस्थ दोनो के प्रयोग से लगाये जाते है। ३३ सकिए-जिसमे साधु तथा गृहस्थ को शुद्धता (निर्दोषता)
की शङ्का होवे। ३४ मक्खिये-वहोराने वाले के हाथ की रेखा अथवा बाल
सचित से भीजे हुए होवे तो।। ३५ निक्खित्त-सचित्त वस्तु पर अचित्त आहार रक्खा होवे। ३६ पहिये-अचित्त वस्तु सचित्त से ढकी होवे। ३७ मिसीये--सचित्त-अचित्त वस्तु मिली होवे। ३८ अपरिणिये-पूरा अचित्त आहार जो न हुआ हो। ३६ सहारिये-एक बर्तन से दूसरे वर्तन (नही वपराया हुआ)
मे लेकर दिया हुआ। ४० दायगो-अगोपाग से हीन ऐसे गृहस्थो से लेवे कि जिन्हे
चलने-फिरने से दु ख होता हो। ४१ लीत्त --तुरन्त के लीपे हुए आगन पर से लिया हुआ । ४२ छडिये-वहोरावने के समय वस्तु नीचे गिरती टपकती होवे।
आवश्यक सूत्र मे बताये हुए ५ दोष १ गृहस्थो के दरवाजे आदि खुला कर लेवे तो। २ गौ कुत्त आदि के लिये रक्खी हुई रोटी लेवे तो। ३ देवी-देवता के नैवेद्य व वलिदान निमित्त बनी हुई वस्तु
लेवे तो। ४ बिना देखी चीज-वस्तु लेवे तो। ५ प्रथम निरस आहार पर्याप्त आया हुआ होवे तो भी सरस
आहार निमित्त निमन्त्रण आने पर रस लोलुपता से आहार ले लेवे तो।