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________________ ४८६ जैनागम स्तोक संग्रह छठ-छठ पारणा, चौमासे अठम २ पारणा करे एव १८ माह तप करके जिन कल्पी होवे अथवा पुन. गुरुकुल वास स्वीकारे। ४ सूक्ष्मसम्पराय चारित्री के २ भेद :-१ संक्लेश परिणामउपशम श्रेणी से गिरने वाले, २ विशुद्ध परिणाम-क्षपक श्रेणी पर चढने वाले। ५ यथाख्यात चारित्री के २ भेद :-१ उपशान्त वीतरागी-११ वे गुणस्थानवाले, २ क्षीण वीतरागी-के २ भेद-छद्मस्थ व केवली (सयोगी तथा अयोगी)। २ वेद द्वार-सामा०, छेदोप० वाले सवेदी (३वेद) तथा अवेदी (नववे गुण अपेक्षा) परि० वि०, पुरुष या पुरुष नपुंसक वेदी सूक्ष्म स० और यथा० अवेदी। ३ राग द्वार-सयती सरागी और यथा. संयती वीतरागी। ४ कल्प द्वार-कल्प के ५ भेद, नीचे अनुसार : (१) स्थित कल्प-नियठा में बताये हुए १० कल्प, प्रथम तथा चरम तीर्थङ्कर के शासन मे होवे । (२) अस्थित कल्प-२२ तीर्थङ्कर के साधुनो मे होवे । १० कल्प में से शय्यान्तर, तकर्म और और पुरुष ज्येष्ठ एव ४ तो स्थित है और वस्त्र कल्प, उद्देशीक आहार कल्प, राजपिड मास कल्प, चातुर्मासिक कल्प और प्रतिक्रमण कल्प एवं ६ अस्थित होवे । (३) स्थविर कल्प-मर्यादापूर्वक वस्त्र-पात्रादि उपकरण से गुरुकुलवास, गच्छ और अन्य मर्यादा का पालन करे। (४) जिन कल्प-जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट उत्सर्ग पक्ष स्वीकार करके, अनेक उपसर्ग पक्ष स्वीकार करके तथा अनेक उपसर्ग सहन करते हुए जगल आदि मे रहे (विस्तार नन्दी सूत्र मे से जानना)। (५) कल्पातीत-आगम विहारी अतिशय ज्ञानवाले महात्मा जो कल्प रहित भूत-भावी के लाभालाभ देख कर वर्ते । सामायिक संयति में ५ कल्प, छेदोप० परि० में ३ कल्प ( स्थित
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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