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________________ प्राराधना पद ( श्री भगवती सूत्र, शतक, ८ उद्देशा १०) आराधना ३ प्रकार को ज्ञान की, दर्शन (समकित) की और चारित्र की आराधना । आराधना-उ० १४ पूर्व का ज्ञान, मध्यम ११ अग का ज्ञान, ज० ८ प्रवचन का ज्ञान। दर्शनाराधना-उ० क्षायक समकित, मध्यम क्षयोपशम समकित ज० सास्वादान समकित । चारित्राराधना-उ० यथाख्यात चारित्र, मध्यम परिहार विशुद्ध चारित्र, ज० सामायिक चारित्र । उ० ज्ञान आ० में दर्शन आ० दो ( उत्कृष्ट और मध्यम ) उ० ज्ञान आ० चारित्र आ० दो ( , ) उ० दर्शत " " " तीन (ज०म०२०) " " " " " " उ० चारित्र " " " " " ) उ." " दर्शन " " ( " ) उ० ज्ञान " वाला ज० १ भव करे उ० २ भव करे " ॥ २ भव " " ३ भव करे म० ॥ ज० ॥ दर्शन और चारित्र की आराधना भी ऊपर अनुसार । __ जीवो मे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना उत्कृष्ट, ४६१
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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