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________________ चार ध्यान ध्यान के ४ भेद--आर्त, रौद्र, धर्म व शुक्ल ध्यान आर्त ध्यान के ४ पाये : १ मनोज्ञ वस्तु की अभिलाषा करे, २ अमनोज्ञ वस्तु का वियोग चितवे, ३ रोगादि अनिष्ट का वियोग चितवे, ४ परभव के सुख निमित्त नियाणा करे। आर्त ध्यान के ४ लक्षण : १ चिन्ता शोक करना, २ अश्र पात करना, ३ आक्रन्द ( विलाप ) शब्द करके रोना. ४ छाती माथा ( मस्तक ) आदि कूट कर रोना। रौद्र ध्यान के ४ पाये : १ हिंरा मे, २ झूठ मे ३ चोरी में, ४ कारागृह मे फसाने मे आनन्द मानना (पाप करके व कराकर के प्रसन्न होना )। रौद्र ध्यान के ४ लक्षण १ तुच्छ अपराध पर बहुत गुस्सा करना, २ द्वेष करना, ४ बड़े अपराध पर अत्यन्त क्रोध-द्वेष करे ३ अज्ञानता से द्वेष करे और ४ जाव-जीव पर द्वेष रक्खे । धर्म ध्यान के ४ पाये . १ वीतराग की आज्ञा का चितवन करे, २ कर्म आने के कारण (आश्रव ) का विचार करे, ३ शुभाशुभ कर्म विपाक को विचारे, ४ लोक संस्थान ( आकार ) का विचार करे। धर्म ध्यान के ४ लक्षण १ वीतराग आज्ञा की रुचि, २ नि सर्ग ( ज्ञान से उत्पन्न ) रुचि, ३ उपदेश रुचि, ४ सूत्र-सिद्धान्त आगम रुचि । धर्म ध्यान के ४ अवलम्बन . १ वाचना २ पृच्छना ३ परावर्तना और ४ धर्मकथा। धर्मध्यान की ४ अनुप्रेक्षा १ एगच्चाणुपेहा-जीव अकेला आया ४५६
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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