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________________ देवोत्पत्ति के १४ बोल निम्नलिखित १४ बोल के जीव यदि देव गति में जावे तो कहा तक जा सके ? मार्गणा जघन्य उत्कृष्ट १ असयति भवि द्रव्य देव भवनपति मे नव ग्रे वेयक मे २ अविराधक मुनि सौधर्म कल्प मे अनुत्तर विमान में ३ विराधक मुनि भवनपति मे सौधर्म कल्प में ४ अविराधक श्रावक सौधर्म कल्प मे अच्युत कल्प मे ५ विराधक श्रावक भवनपति मे ज्योतिषी में ६ असंज्ञी तिर्यञ्च भवनपति मे व्यन्तर देवी में ७ कन्द मूल भक्षक तापस भवनपति मे ज्योतिषी में ८ हासी करने वाले मुनि भवनपति मे सौधर्म कल्प में ६ परिव्राजक सन्यासी तापस भवनपति मे ब्रह्म देवलोक में १० आचार्यादि निन्दक मुनि भवनपति मे लातक , ११ संज्ञी तिर्यञ्च भवनपति मे आठवे , १२ आजीविक साधु (गोशालापथी) भवनपति मे अच्युत , १३ यन्त्र मन्त्र करने वाले अभोगी साधु भवनपति १४ स्वलिगी ववन्नगा ( सम्यक श्रद्धा विहीन) भवनपति में नव ग्रेवेयक मे चौदहवे बोल मे भव्य जीव है। शेष मे भव्याभव्य दोनो है। . ४५१
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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