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________________ धर्म के सम्मुख होने के १५ कारण (१) नीतिमान होवे कारण कि नीति धर्म की माता है । (२) हिम्मतवान और बहादुर होवे कारण कि कायरो से धर्म वन सकता नही । (३) धैर्यवान होवे किवा प्रत्येक कार्य मे आतुरता न करे । (४) बुद्धिमान होवे किवा प्रत्येक कार्य अपनी बुद्धि से विचार कर करे । (५) असत्य से घृणा करने वाला होवे और सत्य बोलने वाला होवे । (६) निष्कपटी होवे, हृदय साफ स्फटिक रत्नमय होवे । (७) विनयवान तथा मधुर भाषी होवे । (८) गुणग्राही होवे और स्वात्म - श्लाघा न करे (स्वयं अपने गुण अन्य से आदर पाने के लिये न कहे ) । (e) प्रतिज्ञा - पालक होवे अर्थात् जो नियमादि लिये हो उन्हे वराबर पाले । (१०) दयावान होवे, परोपकार की बुद्धि होवे । (११) सत्य धर्म का अर्थी होवे और सत्य का पक्ष लेने वाला होवे । (१२) जितेन्द्रिय होवे, कषाय की मन्दता होवे । (१३) आत्म कल्याण की दृढ इच्छा वाला होवे । (१४) तत्त्व विचार में निपुण होवे, तत्त्व में ही रमन करे । (१५) जिसके पास से धर्म की प्राप्ति हुई होवे उसका उपकार कभी भी नही भूले और समय आने पर उपकारी के प्रति प्रत्युपकार करने वाला होवे । * * ४४०
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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