SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१२ जैनागम स्तोक सग्रह प्रत्येक सौ सागर ५१ सकाय , ५२ त्रस काय, ५३ समुच्चय बादर अ० काल अ० जितने लोकाकाश प्रदेश अनन्त काल २००० सागर जारी ७. क्रोडाकोड सागर असं० काल ५४ बादर वनस्पति ५५ समुच्चय निगोद ५६ बादर त्रस काय ५७ से ६२ बादर पृ० अ., ते., वा., प्र., व, बा. निगोद ६३ से ६९ समुच्चय सूक्ष्म पृ०, अ०, ते०, वा०, वन०, निगोद ७० से ८६ नं० ५३ से ६६ के अपर्याप्ता अन्तर्मुहूर्त ८७ से ६३ समुच्चय सूक्ष्म पृ०, अ०, ते०, वा०,व०, निगोद का पर्याप्ता ६४ से ६७ बादर पृ०, अ०, बा० और प्र० वा. वन० का पर्याप्ता ६८ बादर तेउका पर्याप्ता ६६ समुच्चय बादर , अन्तर्मुहूर्त सं० हजार वर्ष सं० अहोरात्रि प्र० सो सागर साधिक अन्तर्मुहूर्त १०० समुच्चय निगोद , १०१ बादर १०२ सयोगो अ० अन०, अ० सांत
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy