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________________ जैनागम स्तोक सग्रह आयुष्य का बल होवे तो सीधे मार्ग से जन्म हो जाता है। इस समय कितने ही मस्तक तरफ से अथवा कितने ही पैर तरफ से जन्म लेते है, परन्तु यदि माता और गर्भ दोनों भारी कर्मी होवे तो गभ टेढा गिर जाता है जिससे दोनो को मृत्यु हो जाती है अथवा माता को बचाने के निमित्त पापी गर्भ के जीव पर बेध कर छुरी व शस्त्र से खण्ड २ करके जिन्दगी पार की शिक्षा देते है। इसका किसी को शोक, सताप होता नही।। __सीधे मार्ग से जन्म लेने वाले सोने चॉदो के तार समान है ।माता का शरीर जतरड़ा है । जैसे सोनी तार खेचता है वैसे गर्भ खिचा कर ( करोड़ों कष्टों से ) बाहर निकल आता है अर्थात् नववे महीने जो पीड़ा होती है उससे क्रोड़ गुणी पीड़ा जन्म के समय गभ को होती है। मृत्यु के समय तो क्रोडाकोड़ गुणा दुख गर्भ को होता है। यह दुख वणनातीत है। ये सब खुद के किये हुए पुण्य पाप के फल है, जो उदय काल मे भोगे जाते है। यह सर्व मोहनीय कर्म का सन्ताप है । ऊपर अनुसार गर्भकाल, गर्भ स्थान तथा गर्भ मे उत्पन्न होनेवाले जीव की स्थिति का विवेचन आदि तंदुल वियालिया पइना, भगवती जी अथवा अन्य ग्रन्थान्तरो के न्यायानुसार गुरु ने शिष्य को उपदेश द्वारा कहकर सुनाया। अन्त मे कहने लगे कि जन्म होने के बाद भनियानी के समान कार्य द्वारा माता संभाल से उछेर कर सन्तति को योग्य उम्र का कर देती है। सन्तति की आशा मे माता का यौवन नष्ट हुआ है, व्यवहारिक सुख को तिलाञ्जलि दी गई है एवं सब बातो को तथा गर्भवास व जन्म के दुखो को भूल कर यौवन मद में उन्मत्त बने हुए पुत्र-पुत्रियां महा उपकारी माता को तिरस्कार दृष्टि से धिक्कार देकर अनादर करते और स्वयं वस्त्रालङ्कार से सुशोभित होते है । तेल-फुलेल, चो वा चदन, चम्पा चमेली, अगर-तगर, अमर और अतर आदि मे मस्त होकर फल-हार व गजरे धारण करते है। इनकी सुगध के अभिमान से अन्धे वन कर ऐसा समझते है कि यह
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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