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________________ गर्भ विचार शरीर के अन्दर अठारह पृष्ट दण्डक नाम की पासलिये है । जो गर्भवास की करोड़ के साथ जुडी हुई है। इनके सिवाय दो वासे की बारह कडक पांसलिये है कि जिनके ऊपर सात पुड चमडे के चढे हुवे होते है । छाती के पडदे मे दो ( कलेजे ) है। जिनमे से एक पड़दे के साथ जुडा हुवा है और दूसरा कुछ लटकता हुवा है । पेट के पडदे मे दो अतस (नल) है जिनमे से स्थूल नल मल स्थान है और सूक्ष्म लघु नीत का स्थान है। दो प्रणव स्थान अर्थात् भोजन पान परगमाने ( पचाने ) की जगह है । दक्षिण परगमे तो दुख उपजे व बाये परगमे तो सुख । सोलह आँतरा है, चार आगुल की ग्रीवा है। चार पल की जीभ है, दो पल की आखे है, चार पल का मस्तक है। नव आंगुल की जीभ है, अन्य मान्यतानुसार सात आंगुल की है । आठ पल का हृदय है पच्चीश पल का कलेजा है। सात धातु का प्रमाण व माप शरीर के अन्दर एक आढा (टेढा) रुधिर का और आधा मांस का होता है । एक पाथा मस्तक का भेजा, एक आढा लघुनीत, एक पाथा बडी नीत का है । कफ, पित्त, और श्लेष्म इन तीनो का एकेक कलव और आधा कलव वीर्य का होता है। इन सबो को मूल धातु कहते है कि जिन पर शरीर का टिकाव है । ये सातो धातु जब तक अपने वजन प्रमाण रहते है तब तक शरीर निरोगी और प्रकाशमय रहता है । उनमे कमी बेसी होने से शरीर तुरन्त रोग के आधीन हो जाता है। नाड़ी विवेचन नाडी का विवेचन-शरीर के अन्दर योग शास्त्र के अनुसार ७२००० नाडिये है। जिनमे से नवसो नाडिये बड़ी है, नव नाडी धमण के समान वडी है जिनके धड़कन से रोग की तथा सचेत शरीर की
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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