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________________ जैनागम स्तोक सग्रह ३ क्षेत्र द्वार : सिद्ध शिला प्रमाण (विस्तार में ) है । यह सिद्ध शिला ४५ लाख योजन लम्बी व पोली है, मध्य में आठ योजन की जाडी है । किनारो के पास से मक्षिका के पांख से भी पतली है। शुद्ध सोने के समान, शंख, चन्द्र, बगुला, रत्न चॉदी का पट, मोती का हार व क्षीर सागर के जल से अधिक उज्ज्व ल है। उसकी परिधि १,४२, ३०, २४६ योजन, १ गाउ १७६६ धनुष्य व पोने छ अगुल झाझेरी है । सिद्ध के रहने का स्थान सिद्ध शिला के ऊपर योजन के छेले गाऊ के छ? भागा में है। अर्थात् ३३३ धनुष्य ३२ अंगुलप्रमाणेक्षेत्र में सिद्ध भगवान रहते है। ४ स्पर्शना द्वार : सिद्ध क्षेत्र से कुछ अधिक सिद्ध की स्पर्शना है। ५ काल द्वार : एक सिद्ध आश्रित इनकी आदि है परन्तु अन्त नही, सवसिद्ध आश्रित आदि भी नही व अन्त भी नही। ६ भाग द्वार : सर्व जीवो से सिद्ध के जीव अनन्तवे भाग है व सर्व लोक के । असख्यातवे भाग है। ७ भाव द्वार: सिद्धो मे क्षायिकभाव तो केवलज्ञान, केवलदर्शन और क्षायिक सम्यक्त्व है और पारिणामिक भाव- यह सिद्धपना है। अन्तर भाव । सिद्धो को फिर लौटकर ससार मे नही आना पड़ता है, जहां एक
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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