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________________ ३२८ जैनागम स्तोक संग्रह ८ ।। ३८ १६८ १३ ५ ३० १६० १ २६ १३१ ४५ . . १०१ . २१३ . १७६ . २०६ लवण समुद्र बादर में २०७ मन योगी मिथ्यात्वी में २०८ अनेक भव वाले अवधि ज्ञान में २०६ समुच्चय सख्यात काल के त्रस मरने वालों में २१० एकान्त संज्ञी मिश्र योगी में २११ तिर्यक लोक नो गर्भज में २१२ मन योगी जीवों में २१३ एकान्त मिथ्यात्वी मनुष्य में २१४ मिथ्यात्वी वैक्रिय मिश्र योगी में २१५ औदारिक तेजो लेशी में २१६ लवण समुद्र में २१७ वचन योगी पंचे० में २१८ त्रस वैक्रिय मिश्र में २१६ वैक्रिय मिश्र में २२० वचन योगी में २२१ अचरम बादर पर्याप्त में २२२ पचे० शाश्वत में २२३ वैक्रिय मिथ्यात्वी में । २२४ चक्षु इन्द्रिय शाश्वत में .२२५ प्रत्येक शरीर बादर पर्याप्त में २२६ औदा० शरीरी अपर्याप्त में २२७ नोगर्भज बादर अभाषक में २२८ त्रस शाश्वत में २२६ प्रत्येक शरीरी पर्याप्त में 6 . . १४ ६ १५ . १३ २०२ ० ४८ १६८ ७ १० १०१ १४ ५ १५ १४६ १५ ७ १३ । १०१ ९६ १८४ १८४ ६६ ६४ ६६ 6 88 ७ १५ १०१ १०१ २४ २०२ 06 6 0 6 6 २१ १०१ ६६
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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