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________________ "२६८ जैनागम स्तोक संग्रह यूथ को भी निर्मल जल पीने दे । वैसे विनीत शिष्य व श्रोता व्याख्या-नादि नम्रता तथा शान्त रस से सुने, अन्य सभाजनों को सुनने दे। ऐसे श्रोता आदरणीय हैं। ८ मसग मसग-इसके दो भेद : प्रथम मसग अर्थात् चमड़े की कोथली में जब हवा भरी हुई होती है, तब अत्यन्त फूली हुई दीखती है ; परन्तु तृषा समाये नहीं हवा निकल जाने पर खाली हो जाती है। वैसे "एकेक श्रोता अभिमान रूप वायु के कारण ज्ञानीवत् तड़ाक मारे, परन्तु अपनी तथा अन्य की आत्मा को शान्ति पहुंचावे नहीं। ऐसे श्रोता छोड़ने योग्य हैं। दूसरा प्रकार-मसग (मच्छर नामक जन्तु) अन्य को चटका मार 'कर परिताप उपजावे, परन्तु गण नहीं करे वरन् नुक्सान उत्पन्न करे । वैसे ऐकेक कुश्रोता गुर्वादिक को ज्ञान अभ्यास कराने के समय अत्यन्त 'परिश्रम देवे तथा कुवचन रूप चटका मारे ; परन्तु वैय्यावृत्य प्रमुख कुछ भी न करे और मन में असमाधि पैदा करे, यह छोड़ने योग्य है । ६जोंक जोंक-इसके भेद २ है। पहला जोक जन्तु गाय वगैरह के स्तन में लग जाये तब खून को पिये, दूध को नहीं पिये । इसी तरह कोई अविनयी कुशिष्य श्रोता आचार्यादिक के पास रहता हुआ उनके -दोषों को देखे, परन्तु क्षमादिक गुणो को ग्रहण नही करे, यह भी त्यागने योग्य है। दूसरे प्रकार का-जोक नामक जन्तु फोड़ा के ऊपर रखने 'पर उसमें चोट मार कर दुःख पैदा करता और विगडे हुए खून -को पीता है, बाद में शान्ति पैदा करता है। इसी तरह कोई विनीत
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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