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________________ बावन बोल २६१ । ४ लब्धि नही, वीर्य नही, दृष्टि १ समकित, भव्य अभव्य नहीं, दण्डक ' नही, पक्ष नही। २१ चरम द्वार के दो भेद १ चरम में भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य २, दण्डक २४, पक्ष २ । २. अचरम में भाव ४ (उपशम छोड़ कर) आत्मा ७ (चारित्र' छोडकर) लब्धि ५, वीर्य १ बाल वीर्य, दृष्टि २ समकित दृष्टि व मिथ्यात्व दृष्टि, अभव्य १ दण्डक २४, पक्ष १ कृष्ण । __ शरीर द्वार के ५ भेद १ औदारिक में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य, अभव्य २, दण्डक १० पक्ष २। २ वैक्रिय में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दण्डक १७ (१३ देवता का, १ नारकी का, १ नारकी का १, मनुष्य का, १ तिर्यंच का व १ वायु का एवं १७), पक्ष २ । ३ आहारक मे-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य १, पंडित वीर्य, दृष्टि १ समकित दृष्टि भव्य १, दण्डक १, पक्ष १ शुक्ल । ४ तैजस व ५ कार्मण में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दण्डक २४, पक्ष २ । गुणस्थानक द्वार १ मिथ्यात्व गुणस्थानक में भाव ३ (उदय, क्षयोपशम, पारिमा १ अचरम अर्थात् अभवी तथा सिद्ध भगवन्त ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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