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________________ २८० जैनागम स्तोक संग्रह वैक्रिय में-जीव का भेद ४-दो संज्ञी का, एक असंज्ञी पंचेन्द्रिय का अपर्याप्त व बादर एकेन्द्रिय का पर्याप्त । गुणस्थानक ७ प्रथम ; योग १२-दो आहारक का, १ कार्मण छोड़ कर ; उपयोग १०-केवल के दो छोड़ कर , लेश्या ६ । आहारक में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त । गुणस्थानक २६ व ७, योग १२-दो वैक्रिय व १ कार्मण छोड़ कर, उपयोग ७-४ ज्ञान व ३ दर्शन, लेश्या ६ । ४ तैजस् कार्मण में-जीव का भेद १४, गुणस्थान १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ । औदारिक प्रमुख पांच शरीर में रहे हुए जीवो का अल्पबहत्व : १ सबसे कम आहारक शरीर २ इससे वैक्रिय शरीर असख्यात गुणा ३ इससे औदारिक शरीर असंख्यात गुणा ४ इससे तैजस् व कार्मण शरीरी परस्पर तुल्य व अनन्त गुणे ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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