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________________ २०८ जैनागम स्तोक संग्रह २२ बावीस प्रकार का परिषह : १ क्षुधा २ तृषा ३ शीत ४ ताप ५ डांस-मत्सर ६ अचेल (वस्त्र रहित) ७ अरति ८ स्त्री ६ चलन १० एक आसन पर बैठना ११ उपाश्रय १२ आक्रोश १३ वध १४ याचना १५ अलाभ १६ रोग १७ तृण स्पर्श १८ जल ( मेल ) १६ सत्कार, पुरस्कार २० प्रज्ञा २१ अज्ञान २२ दर्शन। २३ तेवीस प्रकार के सूत्रकृत सूत्र के अध्ययन : सोलहवें बोल में कहे हुवे सोलह अध्ययन और सात नीचे लिखे हुवे-१ पुंडरीक कमल २ क्रिया स्थानक ३ आहार प्रतिज्ञा ४ प्रत्याख्यान क्रिया ५ अणगार सुत ६ आर्द्र कुमार ७ उदक (पेढाल सुत )। २४ चोबीस प्रकार के देव : १ दश भवनपति, २ आठ वाणव्यन्तर ३ पांच ज्योतिषी, ४ एक वैमानिक। २५ पच्चीस प्रकारे पांच महाव्रत की भावना : पहले महाव्रत की पांच भावना :-१ इर्या समिति भावना २ मन समिति भावना ३ वचन समिति भावना ४ एषणा समिति भावना ५ आदान-भड-मात्र निक्षेपन समिति भावना। दूसरे महाव्रत की पांच भावना : १ विचारे विना बोलना नही २ क्रोध से बोलना नही ३ लोभ से बोलना नही ४ भय से बोलना नही ५ हास्य से बोलना नही । तीसरे महाव्रत की पाच भावना : १ निर्दोष स्थानक याच कर लेना २ तृण-प्रमुख याच कर लेना
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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