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________________ २०१ तेतीस बोल पिलाते होवे उसके हाथ से नही लेवे, तथा एक पांव डेवडी के बाहर और एक पांव डेवडी के अन्दर रख कर वहेरावे, नही लेवे । ३ प्रतिमा धारी साधु को तीन काल गौचरी के कहे है-आदिम, मध्यम, चरम ( अन्त का ) चरम अर्थात् एक दिन के तीन भाग करे पहले भाग में गौचरी जावे तो दूसरेंदो भाग मे नही जावे इसी प्रकार तीनो मे जानना। ४ प्रतिमा धारी साधु को छ प्रकार की गौचरी करना कही है १ सन्दूक के आकार समान (चौखुनी) २ अर्द्ध सन्दूक के आकार (दो पंक्ति) ३ बलद के मूत्र आकार ४ पतंग टीड उड़े उस समान अन्तर २ से करे ५ शख के आवर्तन के समान गौचरी करे ६ जावता तथा आवता गौचरी करे। ५ प्रतिमाधारी साधु जिस गांव में जावे वहां यदि यह जानते होवे कि यह प्रतिमा धारी साधु है तो एक रात्रि रहे और न जानते होवे तो दो रात्रि रहे इस के उपरान्त रहे तो छेद तथा परिहार तप जितनी : रात्रि तक रहे उतने दिन का प्रायश्चित करे। . ६ प्रतिमाधारी चार प्रकार से बोले १ याचना करने के समय २ पथ प्रमुख पूछने के समय ३ आज्ञा मांगने के समय ४ प्रश्नादिक का उत्तर देते समय। ७ प्रतिमाधारी साधु को तीन प्रकार के स्थानक पर ठहरना अथवा प्रतिलेखन करना कल्पे-बगीचे का बगला २ श्मशान की छतरी ___३ वृक्ष के नीचे। ८ प्रतिमाधारी साधु तीन स्थान पर याचना करे । ६ इन तीन प्रकार के स्थानक के अन्दर वास करे। १० प्रतिमा धारी साधु को तीन प्रकार की शय्या कल्पे १ पृथ्वी (शिला) रूप २ काष्ट रूप ३ तृण रूप ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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