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तेतीस बोल
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पूछना ५ छंदना-गुरु अथवा बड़ों को अपने पास की वस्तु आमत्रण करना ६ इच्छाकार-गुरु तथा बड़ो को कहना "हे पूज्य ! सूत्रार्थ ज्ञान देने के लिये आपकी इच्छा है ?" ७ मिथ्याकार-पाप लगा हो तो गुरु के समीप मिथ्या कहकर क्षमा याचना करना (अर्थात् प्रायश्चित लेना) ८ तथ्यकार-गुरु के कथन प्रति कहे कि आप कहो वैसा ही करूगा । ६ अभ्युत्थान-गुरु तथा बड़ो के आने पर सात आठ पांव सामने जाना वैसे ही जाने पर सात आठ पाव पहुँचाने को जाना १० उपसंपद-गुरु आदि के समीप सूत्रार्थ रूप लक्ष्मी प्राप्त करने को हमेशा रहना।
११ ग्यारह प्रकार की श्रावक प्रतिमा १ एक मासकी-इस में शुद्ध सत्य धर्म की रुचि होवे परन्तु नाना व्रत-उपवासादि अवश्य करने के लिये श्रावक को नियम न होवे। उसे दर्शन श्रावक प्रतिमा कहते है । २ दूसरी प्रतिमा दो माह कीइसमे सत्यधर्म की रुचि के साथ-साथ नाना शीलवत-गुणव्रत प्रत्याख्यान पौषधोपवासादि करे परन्तु सामायिक दिशावकाशिक व्रत करने का नियम न होवे वह उपासक प्रतिमा । ३ तीसरी प्रतिमा तीन माह की-इसमे ऊपर कहा उसके उपरान्त सामायिकादि करे, परन्तु अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णमासी आदि पर्व मे पौषधोपवास करने का नियम न होवे । ४ चौथी प्रतिमा चार माह की-इसमे ऊपर कहा उसके उपरान्त प्रति पूर्ण पौषधोपवास अष्टम्यादि सर्व पर्व मे करे। ५ पांचवी प्रतिमा पाच माह की-इसमें पूर्वोक्त सर्व आचरे, विशेष एक रात्रि मे कायोत्सर्ग करे और पाच बोल आचरे; १ स्नान न करे २ रात्रि भोजन न करे ३ लांग न लगावे ४ दिन में ब्रह्मचर्य पाले ५ रात्रि में परिमाण चरे। ६ छट्ठी प्रतिमा छ: माह कीइसमे पूर्वोक्त उपरान्त सर्व समय ब्रह्मचर्य पाले । ७ सातवी प्रतिमा जघन्य एक दिन उत्कृष्ट सात माह की-इसमें सचित्त आहार नही