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श्री गुणस्थान द्वार
२८५ कर्म का उदय । तेरहवे चौदहवे गुण० ४ कर्म वेदे और ४ कर्म का उदय-वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र ।
६ : उदीरणा द्वार पहेले गुणों से सातवे गुण० तक ८ कर्म की उदीरणा तथा सात की (आयुष्य कर्म छोड़ कर) आठवे, नववे गुण० ७ कर्म की उदीरणा (आयुष्य छोड़ कर) तथा ६ कर्म की ( आयुष्य मोहनीय छोड कर ) दशवे गुण० ६ की करे ऊपर समान तथा ५ की करे (आयुष्य मोहनीय वेदनीय छोड़ कर) ग्यारहवे बारहवे गुण० ५ कर्म की (ऊपर समान) तथा २ कर्म की करे-नाम और गोत्र कर्म की। तेरहवे गुण० २ कर्म की उदीरणा-नाम, गोत्र । चौदहवे गुण. उदीरणा नही करे।
१० : निर्जरा द्वार पहले से ग्यारवे गुणस्थान तक ८ कर्म की निर्जरा बारहवें ७ कर्म की निर्जरा (मोहनीय कर्म छोड़ कर ) तेरहवे चौदहवे गुणस्थान ४ कर्म की निर्जरा-वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र ।
११ : भाव द्वार १ उदय भाव २ उपशम भाव ३ भायक भाव ४ क्षायोपशम भाव ५ पारिणामिक भाव ६ सनिवाई भाव ।
पहले तीसरे गुणस्थान ३ भाव-उदय, क्षयोपशम पारिणामिक । दूसरे, चौथे, पांचवे, छटो, सातवे व आठवे गुणों से ग्यारहवें गुण तक उपशम श्रोणि वाले को ४ भाव-उदय, उपशम क्षयोपशम, पारिणामिक (कोई उपशम की जगह भायक भी कहते है) और आठवे से लगा कर वारहवे गुण. तक क्षपक श्रोणि वाले को ४ भाव-उदय, क्षयोपशम, क्षायक, पारिणामिक, तेरहवे चौदहवे गुण ३ भाव-उदय क्षायक, परिणामिक ।