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________________ २७० जैनागम स्तोक संग्रह पुढ विसत्त कप्पो बार, गेविज्य अणुत्तर सिद्धि । पम्माणु पोग्गल दोपएसी, जाव अणंत प्पएसी खधे ॥५॥ अर्थ .-पुरानी शराव, पुराना गुड़, पुराना घी, पुराने चांवल, बादल, बादल की रेखा, सध्या का वर्ण, गंधर्व के चिह्न, नगर के चिह्न (१) १ उल्का पात, २ दिशि दाह, ३ गर्जना, ४ विद्युत, ५ निर्घात ( काटक), ६ शुक्ल पक्ष का बालचन्द्र, ७ आकाश में यक्ष का चिन्ह, ८ कृष्ण धूयर, १० रजोघात (२) चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, चन्द्र का जलकुण्ड, सूर्य जलकुण्ड, एक ही समय दो चाँद, दो सूर्य दिखाई देवे, इन्द्र धनुष्य, जल पूर्ण बादल, मच्छ के चिन्ह, बन्दर के चिन्ह, हस का चिन्ह और बाण का चिन्ह (३) क्षेत्र, वर्षधर, पर्वत, ग्राम, घर, नगर, प्रासाद (महल), पाताल, कलश, भवन पति के भवन नरक वासे, (४) सात पृथ्वी, कल्प ( देवलोक ) वारह, नव | वेयक, पॉच अनुत्तर विमान, सिद्ध शिला, परमाणु पुद्गल दो प्रदेशो स्कन्ध यावत् अनंत प्रदेशी स्कन्ध, (५) इन वोलो में पुद्गल जावे तथा आवे, गले तथा ( आकर ) मिले । अतः इन्हे सादि पारिणामिक कहते है। (६ ) सान्निपातिक भाव :-इस पर २६ भागे । दो संयोगी के दस, तीन सयोगी के दस, चार सयोगी के पॉच, पांच संयोगी के एक एव ३६ भागे नीचे लिखे यन्त्र समान जानना। दो संयोगी के दस भांगे भागा औदयिक औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक पारि० or or or or .
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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