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________________ दश द्वार के जीव स्थानक छ: भाव के भेदः ( १ ) औदयिक भाव के दो भेद :-१ जीव औदयिक, २ अजीव औदयिक। १ जीव औदयिक के दो भेद :-१ औदयिक, २ औदयिक निष्पन्न । १ जिसमें आठ कर्म का उदय हो वो औदयिक और आठ कर्म के उदय से जो २ पदार्थ उत्पन्न होवे ( निपजे ) वह औदयिक. निष्पन्न। आठ कर्म के उदय से जो २ पदार्थ उत्पन्न होवे उस पर ३२ बोल । गाथा :गई, काय, कसाय, वेद, लेस्स मिच्छ दिठि, अविरिये । असन्नी अनाणी आहारे, छउमत्थ सजोगी संसारत्थ असिद्धय ।। अर्थ --गति चार ४ काय छ:, १०, कषाय ४, १४, वेद तीन, १७, लेश्या ६, २३, २४ मिथ्यात्व दृष्टि, २५ अव्रतीत्व ( अवतीपना) २६, असंज्ञोत्व २७, अज्ञान २८, आहारिकपना २६, छद्मस्थपना ३०, सजोगी (सयोगीपना) ३१, सांसारिकपना ( संसार मे रहना ) ३२, असिद्धपना एव ३२ बोल जीव औदयिक से पावे। ___ २ अजीव औदयिक के १४ भेद :-१ औदारिक शरीर, २ औदारिक शरीर से परिणमने वाले पुद्गल, ३ वैक्रिय शरीर, ४ वैक्रिय शरीर से परिणमने वाले पुद्गल, ५ आहारक शरीर, ६ आहारक शरीर से परिणमने वाले पुद्गल, ७ तेजस् शरीर, ८ तेजस् शरीर से परिणमने वाले पुद्गल, ६ कार्मण शरीर, १० कार्मण शरीर से परिणमने वाले पुद्गल, ११ वर्ण, १२ गन्ध, १३ रस और १४ स्पर्श। (२) औपशमिक भाव के दो भेद :-औपशमिक और २ औपशमिक निष्पन्न । मोहनीय कर्म की जो २८ प्रकृति उपशमाई वो औपशमिक और मोहनीय कर्म उपशम करने से जो २ पदार्थ निपजे वो औपशमिक निष्पन्न ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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