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________________ Ramruaintai n . . . जैनागम स्तोक सग्रह का क्रोध एव १६ का क्षयोपशम २८ प्रकृति मे से ये १६ छोड़ शेप १२ का उदय । १६ के क्षयोपशम में २३ संपराय क्रिया नहीं लगे। १२ के उदय में एक माया वत्तिया क्रिया लगे। आठवे जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की ८ प्रकृति में से सात का उपशम तथा क्षायिक (क्षय) १० का क्षयोपशम और ११ का उदय। ७ उपशम तथा क्षायिक-१ अनन्तानुबंधी क्रोध २ मान ३ माया ४ लोभ ५ समकित मोहनीय ६ मिथ्यात्व मोहनीय ७ मिश्र मोहनीय अप्रत्याख्यानी ४, प्रत्याख्यानी ४ एव ८, ६ सज्वलन का क्रोध १० संज्वलन की माया ११ लोभ एव ११ का उदय । १० के क्षयोपणम में २३ संपराय क्रिया नही लगे। ११ के उदय में एक माया वत्तिया क्रिया लगे। नववे जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति में से १० का उपशम तथा क्षायिक, ११ का क्षयोपशम, ७ का उदय । अनन्तानुबंधी के चार ५ समकित मोहनीय ६ मिथ्यात्व मोहनीय ७ मिश्र मोहनीय और ३ वेद एवं १० का उपशम तथा क्षायिक, अप्रत्याख्यानी ४, प्रत्याख्यानी चार, ८, ६ संज्वलन का क्रोध १० मान ११ माया एवं ११ का क्षयोपशम, ६ कषाय के नव में से ३ वेद को छोड़ शेष ६ और संज्वलन का लोभ एव सात का उदय, ११ के क्षयोपशम में २३ संपराय क्रिया नही लगे । सात के उदय में एक माया वत्तिया क्रिया लगे। दसवे जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की २७ प्रकृति में से २७ का उपशम अथवा क्षायिक, १ कुछ संज्वलन का लोभ का उदय २७ के उपशम तथा क्षायिक में २३ संपराय क्रिया नही लगे और एक संज्वलन का लोभ के उदय में एक मायावत्तिया क्रिया लगे। ११ वे जीव स्थानक में मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति में से सर्व प्रकृति उपशमाई है। इससे ४ संपराय क्रिया नहीं लगे,
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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