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________________ १४६ छ. आरो का वर्णन अवस्था मे रहे, ६३ लाख पूर्व तक राज्य शासन किया । पश्चात् अपने पुत्र भरत को राज्य भार सौप कर आपने ४ हजार पुरुषो के साथ दीक्षा ग्रहण की । सयम लेने के एक हजार वर्ष बाद आपको केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ इस प्रकार छमस्थ व केवल अवस्था मे आप कुल मिला कर एक लाख पूर्व तक सयम पाल कर अष्टापद पर्वत पर पद्म आसन से स्थित हो, दश हजार साधु के परिवार से निर्वाण पद को प्राप्त हुए। भगवत के पांच कल्याणक उत्तराषाढा नक्षत्र में हुए। १ पहला कल्याणक, उत्तराषाढ नक्षत्र में सर्वार्थसिद्ध विमान से च्यव कर मरुदेवी रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुए। २ दूसरा कल्याणक, उत्तराषाढा नक्षत्र मे आपका जन्म हुआ। ३ कल्याणक उत्तराषाढा नक्षत्र मे राज्यासन पर विराजमान हुए। ४ चौथा कल्याणक, उत्तराषाढा नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की। ५ पाचवॉ कल्याणक उत्तराषाढा नक्षत्र मे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ व अभिजित नक्षत्र में आप मोक्ष में पधारे । युगलिया धर्म लोप होने के बाद गति पाच जानना । चौथा आरा इस प्रकार तीसरा आरा समाप्त होते ही एक करोड़ा-करोड सागरोपम में ४२००० वर्ष कम का दुखमा-सुखमा नामक (दुख बहुत सुख थोडा) चौथा आरा लगता है । तव पहिले से वर्ण-गध-रस स्पर्श पुद्गलो की उत्तमता मे हीनता हो जाती है क्रम से घटते-घटते मनुष्यो का देह मान ५०० धनुष्य का व आयुष्य करोडा-करोड पूर्व का रह जाता है उतरते आरे सात हाथ का देहमान व २०० वर्ष में कुछ कम का आयुष्य रह जाता है । इस आरे में सघयन छ. सस्थान छ: व मनुष्यो के शरीर मे ३२ पांसलिये, उतरते आरे केवल १६ पांसलिये रह जाती है । इस आरे की समाप्ति मे ७५ वर्ष ८|| माह जब शेष रह जाते है तब दशवे प्रारणत देवलोक से वीस सागरोपम का आयुष्य भोग कर तथा चव कर माहणकुड नगरी मे ऋषभ दत्त ब्राह्मण के यहाँ देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में श्री महावीर स्वामी -- . . .:-- - - -
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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