SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गतागति द्वार १४३ ५५३ की .-५६३ बोल मे से पाँच अनुत्तर विमान का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये १० छोड़ शेष ५५३ । (१०) स्त्री वेद की आगति ३७१ बोल की मिथ्या-दृष्टि समान । गति ५६१ बोल की :- सातवी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये दो बोल छोड (५६३-२) शेष ५६१ । (११) पुरुष वेद की आगीत ३७१ बोल की-मिथ्या दृष्टि की आगति समान । गति ५६३ की। (१२) नपु सक वेद की आगति २८५ बोल की .-६६ जाति का देव का पर्याप्ता व उपरोक्त १७९ बोल और सात नरक का पर्याप्ता एवं (6-+ १७९६+७) २८५ बोल । गति ५६३ बोल की। सातवा आयुष्य द्वार इस भव के आयुष्य के कौन से भाग मे परभव के आयुष्य का बंध पड़ता है उसका खुलासा : दस औदारिक का दण्डक सोपकर्मी व नोपकर्मी जानना-नारकी का १ दण्डक और देव का १३ दण्डक ये १४ दण्डक, ये १४ दण्डक नोपकर्मी जानना। दस औदारिक के दण्डक मे से जिसका असंख्यात वर्ष का आयष्य है वो नोपकर्मी तथा जिसका संख्यात वर्ष का आयुष्य है वो सोपकर्मी और नोपकर्मी दोनो है। नोपकर्मी निश्चय मे आयुष्य के तीसरे भाग में परभव का आयुष्य बाधते है। ___ सोपकर्मी है वो आयुष्य के तीसरे भाग में, उसके भी तीसरे भाग मे तथा अन्त में अन्तर मुहूर्त शेष रहे तब भी परभव का आयुष्य बाधते है। असख्यात वर्ष के मनुष्य तिर्यञ्च तथा नेरिये व देव नोपकर्मी है। ये निश्चय मे आयुष्य के ६ माह शेष रहे उस समय परभव का आयुष्य बांधते है।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy