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________________ १४० जनागम स्तोक सग्रह ५ अनुत्तर विमान एवं १८ छोड शेष ८१ जाति का देव) सात नरक का पर्याप्ता ये ८८ और ऊपर कहे हुवे १७६ एवं २६७ बोल । ___ गति पॉचों की अलग अलग १ जलचर की ५२७ बोल की :-५६३ मे से नववे देवलोक से सर्वार्थसिद्ध तक १८ जाति का देव का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एव ३६ बोल छोड़, शेष ५२७ बोल । __ २ उरपर (सर्प) की ५२३ बोल की :-उक्त ५२७ मे से छठी और सातवी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये चार बोल छोड़ शेष ५२३ बोल। ३ स्थलचर की ५२१ बोल की-५२३ में से पांचवी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता-ये दो बोल घटाना। ४ खेचर की ५१६ बोल की—५२१ में से चौथी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता-ये दो बोल घटाना।। ५ भुजपर (सर्प) की ५१७ बोल की :-५१६ में से तीसरी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये २ बोल घटाना । ___असंज्ञी मनुष्य की आगति १७१ बोल की-ऊपर कहे हुए १७६ बोल में से तेजस् वायु का आठ बोल घटाना । गति १७९ बोल की, ऊपर समान । १५ कर्मभूमि सज्ञी मनुष्य की आगति २७६ बोल की-उक्त १७६ बोल में से तेजस् वायु का आठ बोल घटाने से शेष १७१ बोल, १६ जाति के देव, और पहली नरक से छठ्ठी नरक तक एव (१७१+ ६६+६) २७६ वोल । गति ५६३ बोल की। ____३० अकर्म भूमि संज्ञी मनुष्य की आगति २० बोल की । १५ कर्म भूमि, ५ सज्ञी तिर्यञ्च एवं २० वोल गति नीचे अनुसार। ५ देव कुरु, ५ उत्तर कुरु । इन दस क्षेत्र के युगलियो की १२८ बोल की ६४ जाति के देव का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एव १२८ वोल की।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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