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________________ १२४ जैनागम स्तोक संग्रह २ दंसण निण्हवरियाए : बोध बीज सम्यक्त्व दाता के नाम को छिपावे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे । ३ दसरण अंतरायेण :- यदि कोई समकित ग्रहण करता हो उसे अन्तराय देवे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे । ४ दंसण पाउसियाए - समकित तथा सम्यक्त्वी पर द्वेष करे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे । ५ दसणआसायणाए :- समकित तथा सम्यक्त्वी की असातना करे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे । ६ दंसण विसवायणा जोगेणं :- सम्यक्त्वी के साथ खोटा व झूठा विवाद करे तो दर्शनावरणीय कर्म बाँधे । दर्शनावरणीय कर्म नव प्रकार से भोगे १ निद्रा २ निद्रा - निद्रा ३ प्रचला ४ प्रचला प्रचला ५ थीद्धि (स्त्यानद्धि) ६ चक्ष ुदर्शनावरणीय ७ अचक्ष दर्शनावरणीय अवधिदर्शनावरणीय & केवलदर्शनावरणीय । दर्शनावरणीय कर्म की स्थिति जघन्य अन्तरमुहूर्त की उत्कृष्ट तीस करोडाकरोडी सागरोपम की, अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का । ३ वेदनीय कर्म का विस्तार वेदनीय कर्म के दो भेद - १ सातावेदनीय २ असातावेदनीय | वेदनीय कर्म की सोलह प्रकृति-आठ साता वेदनीय की और आठ असातावेदनीय की । सातावेदनीय कर्म की आठ प्रकृति १ मनोज्ञ शब्द २ मनोज्ञ रूप ३ मनोज्ञ गंध ४ मनोज्ञ रस ५ मनोज्ञ स्पर्श ६ मन सौख्य (सुहिया) ७ वचन सौख्य - काया सौख्य ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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