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________________ चौबीस दण्डक ___११३ __ चौथे ,, ,, ५०० धनुष्य की , , १ गाउ की पांचवे , , १ गाउ की , २ , " छ? , " २ " " " ॥ ३ ॥ ॥ मनुष्य वैक्रिय करे तो जघन्य अगुल के संख्यातवे भाग उप्कृष्ट लक्ष योजन झाझेरी (अधिक) ३ सघयण द्वार–सघयण छ. ही पावे। • संस्थान द्वार-संस्थान , , , ५ कषाय द्वार-कषाय चार , , ६ सज्ञा द्वार-सज्ञा चार ही पावे। ७ लेश्या द्वार-लेश्या छ. , , ८ इन्द्रिय द्वार--इन्द्रिय पाच हो पावे । ६ समुद्घात ,,-समुद्घात सात हो पावे । १० सज्ञी ,ये सज्ञी है। ११ वेद ,-वेद तीन ही पावे। १२ पर्याप्ति द्वार-इनमें पर्याप्ति ६ अपर्याप्ति ६ । १३ दृष्टि , इनमें दृष्टि तीन । १४ दर्शन ,-, दर्शन चार । १५ ज्ञान -,' ज्ञान पाच, अज्ञान तीन । १६ योग ,-, योग पन्द्रह १७ उपयोग ,-, उपयोग बारह । १८ आहार ,-, आहार तीन प्रकार का। १६ उत्पत्ति ,-, मनुष्य गर्भज में- तेजस्, वायु काय को छोड़ कर शेष बावीस दण्डक का आवे । २२ स्थिति द्वार अवसर्पिणी काल में पहिले आरे लगते तीन पत्य की स्थिति उतरते आरे दो पल्य की
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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