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________________ चौबीस दण्डक ( १३) दृष्टि (१४) दर्शन दर्शन ३ अवधि दर्शन । : 11 " दृष्टि तीन । दर्शन तीन - १ चक्षु दर्शन २ अचक्ष . १११. (१५) ज्ञान द्वार. ज्ञान तीन १ मति ज्ञान २ श्रुतज्ञान २ अवधि ज्ञान । अज्ञान भी तीन१ मति अज्ञान २ श्रुत अज्ञान ३ विभग ज्ञान | - (१६) योग द्वार : योग तेरह : १ सत्य मनयोग २ असत्य मनयोग ३ मिश्र मनयोग ४ व्यवहार मनयोग ५ सत्य वचनयोग ६ असत्य वचनयोग मिश्र वचन योग व्यवहार वचन योग & औदारिक शरीर काय योग १० औदारिक मिश्र शरीर काययोग ११ वैक्रिय शरीर काययोग १२ वैक्रिय मिश्र शरीर काययोग १३ कार्मरण शरीर काययोग | ( १७ ) उपयोग द्वार : तिर्यच गर्भज में उपयोग ९ (नौ) १ मति ज्ञान उपयोग २ श्रुतज्ञान ३ अवधि ज्ञान उपयोग ४ मति अज्ञान उपयोग ५ श्रुत अज्ञान उपयोग ६ विभाग ज्ञान उपयोग ७ चक्ष दर्शन उपयोग ८ अचक्षु दर्शन उपयोग & अवधि दर्शन उपयोग । (१८) आहार : - आहार तीन प्रकार का । (१६) उत्पत्ति द्वार : (२२) च्यवन द्वार : चौवीस दडक मे उपजे, चौवीस दडक मे जावे । (२०) स्थिति द्वार : - जलचर की – जघन्य अन्तर मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्य की । स्थलचर की — जघन्य अन्तर्मुत्कृष्ट तीन पल्य की । -
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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