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________________ चौबीस दण्डक १०६ की ज० अ० मुहर्त की उ० छ: मास की । तिर्यंच समूछिम पचे० की नीचे अनुसारगाथा-पुव्वक्कोड चउरासी, तेपन, बायालीस, बहुत्तरे । सहसाइ वासाइ स मुछिमे आऊय होइ ॥ जलचर की स्थिति ज० अ० मुहूर्त की उ० कोड़ पूर्व वर्ष की। स्थलचर की ज० अ• मुहूर्त की उ० चौराशी हजार वर्ष की । उरपर (सर्प) की ज० अ० मुहूर्त की उ० ५३ हजार वर्ष की । भुजपर (सर्प) की ज० अ० मुहूर्त की उ० २ हजार वर्ष की । खेचर की ज० अ० मुहूर्त को उ० ७२ हजार वर्ष की। २१ मरण द्वार समोहिया मरण --चीटी की चाल के समान जिस की गति हो। असमोहिया मरण -बन्दूक की गोली के समान जिस की गति हो। २३ आगति द्वार २४ गति द्वार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौरि० मे दो गति-मनुष्य और तिर्यंच का आवे और दो गति मनुष्य तिर्यच मे जावे। तिर्यच समूझिम पचे० में दो-मनुष्य और तिर्यंच-गति के आवे और चार गति मे जावे १ नरक २ तिर्यच ३ मनुष्य ४ देव । तिर्यञ्च गर्भज पचेन्द्रिय का एक दंडक (१) शरीर : तिर्यञ्च गर्भज पचेन्द्रिय में शरीर ४ १ औदारिक २ वैक्रिय ३ तेजस् ४ कार्माण (२) अवगाहना। गाथा-जोयण सहस्स छ गाउ आई ततो जोयण सहस्स । गाउ पुहूत्त भुजये धणुह पुहुत्त च पक्खीसु ॥
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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