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________________ चौबीस दण्डक १०५. की। तेजस् काय की ज० अ० मुहूर्त की उ० तीन अहोरात्रि की । वायु काय की ज० अ० मुहूर्त की उ० तीन हजार वर्ष की। वनस्पति काय की ज० अ० मुहूर्त की उ० दश हजार वर्ष की। २१ मरण द्वार: इनमें समोहिया मरण और असमोहिया मरण दोनों होते है। २३ आगति द्वार . २४ गति द्वार : पृथ्वी काय, अपकाय, वनस्पति काय, इन तीन एकेन्द्रिय में तीन-१ मनुष्य २ तिर्यच ३ देव-गति के आवे और १ मनुष्य २ तिर्यच-दो गति मे जावे। तेजस और वायु काय में १ मनुष्य २ तिर्यंच दो गति के आवे और तिर्यच-एक गति में जावे। बेइन्द्रिय, त्रोन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और तिर्यञ्च संमूच्छिम पंचेन्द्रिय के दण्डक १ शरीर द्वार बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौरिन्द्रिय व तिर्यञ्च समूच्छिम पचेन्द्रिय मे शरीर तीन-१ औदारिक, २ तेजस् ३ कार्माण । २ अवगाहना द्वार बेइन्द्रिय की अवगाहना जघन्य अगुल के असख्यातवे भाग उत्कृष्ट बारह योजन की। त्रीन्द्रिय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असख्यातवे भाग उत्कृष्ट तीन गाउ ,६ मील) की। चौरिन्द्रिय की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट चार गाउ की। तिर्यञ्च समूच्छिम पचेन्द्रिय की जघन्य अगुल के असख्यातवे भाग उत्कृष्ट नीचे अनुसार :
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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