SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौबीस दण्डक εξ नवमें देवलोक से अनुत्तर विमान तक एक दण्डक - मनुष्य का आवे और एक मनुष्य ही में जावे । २० स्थिति द्वार : - पहले नरक के नेरियो की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक सागर की । १ सागर की, उ० ३ सागर की, उ० ७ सागर की, उ० दूसरे नरक की ज़० तीसरे नरक की ज० चौथे नरक की ज० पाँचवे नरक की ज० १० सागर की, उ०१७ सागर की । छठे नरक की ज० १७ सागर की, उ० २२ सागर की । सातवे नरक की ज० २२ सागर की उ० ३३ सागर की । ३ सागर की । ७ सागर की । १- सागर की । दक्षिण दिशा के असुरकुमार के देव की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की उ० एक सागरोपम की । इनकी देवियो की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की उ० ३ ॥ पल्योपम की । इनके नवनिकाय के देवो की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की उ० १॥ पल्योपम की । sant देवियो की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की उ० पौन पल्यकी । उत्तर दिशा के असुर कुमार के देवो की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की, उ० एक सागर झाझेरी । इनकी देवियो की स्थिति ज० दश हजार वर्ष की, उ० ४ ॥ पल्य की । नवनिकाय के देव की ज० दश हजार वर्ष उ० देश उरगा ( कम ) दो पल्योपम की, इनकी देवियो की ज० दश हजार वर्ष की उ० देश उणा ( कम ) एक पल्योपम की । वाणव्यन्तर के देव की स्थिति ज० दश हजार वर्ष की, उ०
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy