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दान-पुण्य
तेरह-पन्थी लोग पुण्य का अलग थंधना नहीं मानते। वे कहते हैं कि
'पुण्य तो धर्य लारे बंधे छे, ते शुभ योग छे, ते निर्जरा विना पुण्य निपजे नहीं।' . .
(भ्रम-विध्वंसन पृष्ठ १) इसके अनुसार तेरह-पन्थी लोगों का कथन है कि पुण्य की उत्पचि निर्जरा के साथ ही होती है। मिना निर्जरा के पुण्य की उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु जिस तरह खेत में अनान के साथ घास अपने आप ही उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार निर्जरा के साथ पुण्य भी उत्पन्न होता है। पुण्य स्वतन्त्र रूप से उत्पम नहीं होता।