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( ७६ ) का अर्थ बताते हुए. असई पोसणिया का अर्थ 'वेश्या श्रादि ने पोषणआदिक कर्म लिखते हैं। फिर भी इस अर्थ को एक ओर फेंक कर दया तथा दान का विनाश करने के लिए प्रसाई पोसणिया का अर्थ असंयति पोषण कर डाला, तथा इस पर प्रश्न उत्पन्न करके उसका समाधान भी कर डाला | धन्य है, सुपात्र साधुओं को ! क्या कोई श्रावक भी ऐसा कर सकेगा? . .. तेरह-पन्थियों के झूठ, कपट और धोखेबाजी का एक और उदाहरण लीजिये। तेरह-पन्थी लोग 'भ्रम-विध्वंसन' पृष्ठ ८० में लिखते हैं
तथा गणांग ठाणे ४ उद्देश्या ४ में कुपात्र ने कुक्षेत्र कह्या । ते पाठ लिखिये छ। __ "चत्तारि मेहा ५० त० खेत्तवासी णाम मेगे जो अक्खेतवासी, एवामेव चत्तारि पुरिस जाया प० त० खेत्तवासी णाम मेगे णो अक्खेतवासी। -इहाँ पिण कुपात्र दान कुक्षेत्र कह्या कुपात्र रूप कक्षेत्र में ( पुण्य रूप ) वीज किम उगे । डाहा हुवे तो विचारी 'जोइजो।
यह है तेरह पन्थियों का कथन। इस कथनं द्वार। तेरह-पन्थी ठाणांग सूत्र के चौथे ठाणे के चौथे उद्देश्ये की दी गई धौभंगी