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वली मिथ्यात्वी ने भली करणी रे लेखे मुव्रती कह्यो छे। ते पाठ लिखिये छ।
ऐसा कहकर उत्तराध्ययन सूत्र के ७ वें अध्ययन की २० वीं गाथा उद्धृत करते हुए लिखते हैं
अथ इहाँ इम कह्यो। जे पुरुष गृहस्थ पणे प्रकृति भद्र परिणाम, क्षमादि गुण सहित एहवा गुणा ने मुव्रती कह्या । परं १२ व्रतधारी नथो। ते जाव मनुष्य मरी मनुष्य में उपजे । ए तो मिथ्यात्वी अनेक भला गुणां सहित ने सुव्रती कह्यो। ते करणी भली आज्ञा मां ही छे। अने जे क्षमादि गुण आज्ञा में नहीं हुवे तो मुव्रती क्यू कयो । ते क्षमादिक गुणां री करणी अशुद्ध होवे तो कुवती कहता। ए तो साम्पत भली करणी आश्रयी मिथ्यात्वी ने मुव्रती कह्यो छे। अने जो सम्यक दृष्टि हुए तो मरी ने मनुष्य हुए नहीं। अने इहाँ कह्यो ते मनुष्य मरी मनुष्य में उपजे ते न्याये प्रथम गुण ठाणे छ । तेह ने सुव्रती कह्यो । ते निर्जरा री शुद्ध करणी आश्रयी कह्यो छे । ... इस कथन द्वारा वे कहते हैं कि क्षमादि गुणों के कारण से मिथ्यावी सुव्रती है, और भपने इस कथन की पुष्टि में उत्तरा