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यदि आशा से अधिक समय तक सुरक्षित रहती है, यदि भाशा से अधिक गुण देने वाली हो जाती है, तब उस पात्र को प्रशंसा में 'सु' विशेषण लगाकर उसे सुपात्र कहा जाता है । इसी प्रकार जिसमें रखी हुई वस्तु आशा से बहुत कम समय में ही खराब हो जाती है, अथवा आशा तो यह थी कि इस पात्र में वस्तु के गुण में वृद्धि होगी लेकिन इस श्राशा के विरुद्ध वस्तु विपरीत गुणकारा अथवा गुणहीन बन जाती है, तब उस पात्र की निन्दा करने के लिए 'कु' विशेषण लगाकर उसे कुपात्र कहा जाता है । इस प्रकार 'सु' और 'कु' विशेषण पात्र के लिए ही लगते हैं। जो अपात्र है, उसमें रखी हुई वस्तु यदि खराब भी हो जावे, तो उसको कुपात्र न कहा जावेगा, किन्तु अपात्र ही कहा जावेगा । उदाहरण के लिए खटाई के बर्तन में रखा गयां दूध यदि खराब हो जावे, तो क्या उस बर्तन को कुपात्र कहा जावेगा ? यही कहा जावेगा कि यह वर्तन ही दूध रखने के योग्य न था, दूध के लिए अपात्र था। किसी हॉजड़े को फौज में भर्ती करके युद्ध में भेजा जावे, और वहाँ से वह ताली बजाकर भागे, तो उसको कुपात्र न कहा जावेगा, किन्तु यही कहा जावेगा कि यह फौज के लिए अपात्र हो था । परन्तु जो बर्तन दूध के लिए अपात्र रहा है, वह खटाई के लिए पात्र है । जो हॉजड़ा फौज के लिए अपात्र रहा है, वह ताली बजाकर, नाचने गाने के लिए पात्र है । इस प्रकार