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इस बात को और भी अधिक स्पष्ट करते हुए 'भ्रम - विध्वंसन' -
पृष्ठ ७९ में कहा गया है
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साधु थी अनेरा तो कुपात्र थे ।
: अर्थात् साधु के सिवाय सब लोग कुंपात्र हैं ।
इस प्रकार असंयमी अव्रती को तेरह-पन्थी लोग कुपात्र कहते हैं । व्रतधारी श्रावक का समावेश भी कुपात्र में ही करते । जैसा कि वे कहते हैं
वेषधारी श्रावक ने सुपात्र थापे तिण ने नित्य निमाँ या कहे मोक्ष रो धर्मो । उण ने सूत्र शस्त्र ज्यूँ परणमिया हिंसा दृढाय बांधे मूढ कर्मों ॥
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( ' अनुकम्पा' ढाल १३ वीं ) अर्थात् - वेषधारी, ( तेरह - पन्थी साधु के सिवाय दूसरे सभी साधु ) श्रावक को सुपात्र बताकर कहते हैं कि श्रावक को नित्य भोजन कराना, मोक्ष का धर्म है। ऐसा कहने वालों के लिए सूत्र भी शख की भाँति परगमे हैं, और वे मूढ हिंसा की स्थापना करके कर्म बाँधते हैं ।
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" संक्षेप में वे लोग अपने सिवाय और सभी लोगों को छः काय के शत्र, श्रसंयमी, अत्रती और कुपात्र कहते हैं। यह बात उनसे प्रश्न करके भी जानी जा सकती है । यदि वे कहें कि, और लोग अथवा श्रावक कुपात्र छ : काय के शस्त्र असंयमी अत्रती
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