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विषय
सम्पादक और प्रकाशक का निवेदन
जैन-दर्शन में श्वेताम्बर तेरह - पन्थ
0546
स और स्थावर जीव समान नहीं हैं मारा जाता हुवा जीव, कर्म की निर्जरा नहीं करता,
किन्तु अधिक. कर्म बाँधता है
विषय सूचि :
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श्रावक कुपात्र नहीं है'
दान-पुण्य
. दान करना पाप नहीं है जीव बचाना पाप नहीं है.
तेरह-पन्थियों की कुछ भ्रमोत्पादक युक्तियाँ और उनका
समाधान - संख्या १ से ७ तक
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परिशिष्ट नं० २
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परिशिष्ट नं० १. ';
थली में पाँच दिवस का प्रवास ('तरुण जैन' से उद्धृत ) श्री भग्न हृदय की चिट्ठी चिट्ठी-पत्री
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वेरा-पंथ अने तेनी मान्यताओ ( गुजराती भाषा में ) लेखक-श्रीमान् चिम्मनलाल चक्कुभाई शाह
पृष्ठ
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१ से
११ से
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३४
३५ से ४८
- ४९ से ७९
८० से ९२
९३ से १०९
११० से १२६
१२७ से १४६
तेरह - पन्थ और 'जैन' पत्र (श्वे० मू० पू० 'जैन' में से
अनुवादित) 'चोपड़ांनी का तेरह - पन्थ इतिहास' १७२ से १७६
परिशिष्ट नं० ३
१४७ से १६०
१६१ से १६७
१६८ से १७१
J. P., M. A. LL B. सॉलिसीटर १७७ से १८२