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( ३० ) ऐसी दशा में एकेन्द्रिय जीव से पंचेन्द्रिय जीव प्रधान रहे या नहीं ? और एकेन्द्रिय जीवों की उपेक्षा करके भी पंचेन्द्रिय जीवों की रक्षा करना सिद्ध हुमा या नहीं ? फिर जब सारथी ने उन पाड़े और पीजरे में वन्द पशु-पक्षियों को खोल दिया, तब भगवान अरिष्टनेमि ने सारथी को अपने भाभूषण इनाम में दिये। जो पशु-पक्षी जीवित रहे, वे कितनी हिंसा करेंगे। उस हिंसा को जानते हुए भी भगवान ने सारथी को पुरस्कार क्यों दिया ?
तेरह-पन्थी लोगों के सिद्धान्तानुसार तो किसी जीव को कुछ देना पाप है, किसो जीव के प्रति करुणा करना राग है, जो अनेक भव तक जन्म-मरण कराने वाली है। फिर भगवान अरिष्टनेमि ने दोनों ही काम क्यों किये १ जीवों पर करुणा भी की, तथा उनको बचाया भी। फिर भी उन्हें भव-भ्रमण करना न पड़ा, वे तद्भव हो सिद्ध हुए। यदि भगवान अरिष्टनेमि की इच्छा जीवों को बचाने की न होती, तो बेचारे सारथी की क्या ताकत थी, जो वह उग्रसेन के बाड़े पांजरे में बन्द पशुपक्षियों को खोल देता। और कदाचित सारथी ने उनकी इच्छा न होने पर भी पशु-पक्षियों को छोड़ दिया था, तो भगवान अरिष्टनेमि ने अपने आभूषण पारितोषिक रूप में उसको क्यों दिये ? यदि वैराग्य आजाने से दिये तो मुकुट क्यों न दे दिया ?.