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( १३५ ) साहूकार के यहाँ रहे, उसको न हर्ष होता है, न शोक होता है क्योंकि वह जड़ है। परन्तु जीव के लिए यह बात नहीं है। जीव, अनुकूल परिस्थिति से प्रसन्न होता है, और प्रतिकूल परिस्थिति से दुःखी होता है। बकरे को यदि काटा या जलाया जाने लगे, तो वह चिल्लाता है, परन्तु धन को चाहे काटा जावे या जलाया जावे, यह चूं तक नहीं करता। ऐसी दशा में मारे जाते हुए पकरे की तुलना, चोरी जाते हुए धन से करना, यह तो लोगों को भ्रम में डालना ही है। __ दूसरी बात यह कि कोई व्यभिचारिणी स्त्री अपने जार पति के लिए मरी हो, इस बात का एक भी उदाहरण नहीं मिल सकता। जार पति से रुष्ट होकर, उसका व्यभिचारिणी स्त्री ने सर्वनाश करा दिया या कर देती है। इसके तो सैंकड़ो उदाहरण हैं, परन्तु जार पति के छूट जाने से कोई व्यभिचारिणी बी मरी हो, इसका उदाहरण संसार भर में ढूँढने पर भी नहीं मिल सकता। जो स्त्री अपने विवाहित पति को भी छोड़ सकती है, वह अपने जार पति के लिए प्राण दे दे, यह कभी सम्भव ही नहीं है। इस तरह का उदाहरण देना भी लोगों को भुलावे में डालने के लिए ही है।
हम तेरह-पन्थियों की युक्ति का खण्डन उन्हीं की युक्ति को दूसरे रूप में रखकर करते हैं।