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का सूत्र पदना, पाप कहते हैं। यह बताने के लिए तेरह-पन्थ के सैद्धान्तिक ग्रन्थ 'भ्रम विध्वंसन' में 'सूत्र पठनाधिकार' नाम का एक पूरा अध्याय ही दिया गया है। तेरह-पन्थियों ने केवल अपनी मान्यताओं की असत्यता से श्रावकों को अनभिज्ञ रखने के उद्देश्य से ही ऐसा किया है। श्रावकों के लिए धर्म शास्त्र का पठन पाप है, तेरह-पन्थियों का यह सिद्धान्त भी समस्त धर्मो, सम्प्रदायों या मज्रयों के विरुद्ध है। इस सम्बन्ध में तेरह पन्थियों के द्वारा दिये गये प्रमाण, युक्ति भादि बिल्कुल व्यर्थ से हैं, इसीलिए हमने उनको पालोचना या उनका खण्डन करना आवश्यक नहीं समझा है। तेरह-पन्थी साधुओं का श्रावकों के लिए सूत्र-पठन का निषेध, इतना तो स्पष्ट करता ही है कि तेरह-पन्थी साधु अपने सिद्धान्तों और अपनी मान्यताओं को अन्ध श्रद्धा के सहारे मनवाना चाहते हैं । खैर !
हमको तेरह-पन्थी लोगों से किसी प्रकार का द्वेष नहीं है । संसार के लाखों साधु, गृहस्थों के आश्रय में निर्वाह करते हैं, उसो प्रकार तेरह-पन्थी साधु भी करें, इसमें हमारे लिए क्या आपत्ति हो सकती है ? ऐसा होते हुए भी हमको उनके विरुद्ध जो कुछ लिखना पड़ा है, उनके सिद्धान्तों की जो आलोचना करनी पड़ी है, उनकी मान्यताओं का जो खण्डन करना पड़ा है, वह केवल इस कर्तव्यवश कि तेरह-पन्थी साधु अपने सिद्धान्त