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________________ ( १ ) भाग्य वली नर नेहके । ते सारे नित प्रत सेववी ॥ प्रा० ॥ १ ॥ बाहु सुबाहु गुण बोला । सुज्ञात जगतको ईसजी ॥ स्वयं प्रभु मोटा महि । जिय जोत्या रागनैरी सनी ॥ प्रा० ॥२॥ क्टषभानन्द मानन्दकर । अनन्त वीर्य गुणखानजी ॥ सूर प्रभु सेव्यांथकां । कोइ पामै पद निरवानी || प्रा० ॥ ३ || बोपाल प्रभु बैरागोया । बजरधर बच्च समानजी ॥ घाती कमीने खयकरी । प्रभु पाम्यां केवल ज्ञानजी ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ चंद्रा नन्दजी वारमां । चन्द्र बाहु रद्यां सुखकार बी ॥ सुजंग प्रभु भय मेटिया । जिण बरो शिव सुन्दर नारवी ॥ प्रा० ॥ ५ ॥ इश्वरजी बगरश्वरू । श्रीनेमोंश्वर जिनराय नी ॥ बोरसेन महाभद्रजौ । ज्यांरा लुल २ पूत्रो पायचो ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ देव नश दौवाकक उद्योत करण संसारनी | भजित बौयॅ जिन .
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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