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________________ ( ६२ ) जन्म गणिराजनो। तेवीसै संयम धारी! हारे संयम धारीरे प्रवा धारी ॥ हारे हुवा पंडितां में मुबिचारी। हारे एहतो चौपन पट अधिकारौ ॥ सयल जन कर रह्या क्षमा क्षमा सुखकारी ॥ हारे मुख० ॥ ॥ ३ ॥ गुणषट् टसोपता । असठ संपदा सोहै । हरि संपदा सोहैरे संपदा सोहै। हारे भविपेखित हरषित होवै ॥ हरिगणि चंद चकोरञ्य जोवे । सोहत षोडसं भोपमा सुखकारी ॥ हरि सुख० ॥४॥ सारकतारक आपछोगगिधौरा । हारेगणिधीरारंगणिधौरा० हारे तुमसिंधूजेमगंभौरा ॥ हारे मैंतो पाया अमोलकहीरा ॥ गंधहस्तिज्य पुरषोतमांसुख कारौ । हरिसुख० ॥४॥ दयालगवाल कपाल छोमणि मेस। हारे गणि मेरारंगणिमेरा. हरि मैंतो सरणलिया प्रभुतेरा ॥ हरिमुज मेटो भवभवफेरा। तुमसम नहीको भर्थमा
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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