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________________ [३०] शोभ बचन थी बेमुख हुबोतो ॥ सुब अर्थ शंभारोरे ॥ दश दृष्टान्ते दुरलभ लाधौ॥ ते नर भवकांडू हारोरे ॥ को० ॥ १० ॥ एक दमडौरी हंडिया लेवेतो ॥' कर प्रिक्षा च्यारोरे ॥ पिण सत्तगुरुने पाषंड सत्तरो॥ पाप्यां काढो नहिं निस्तारो॥ को० ॥११॥ पतिमूनां पर बिधवा हुवै ॥ तेसम या सिणगारोरे॥ ज्यूंमुढ़पणैमें मग्न भयापिण ॥ नहीं संत सिर दारीरे ॥ कोद. ॥१२॥ डाकण थकूनै कपड़ा नाखै ॥ बलिहुवै जरख असवारोरे ॥ ज्य ग्रहस्थनै पाषंडी मिलिया ॥ किम उतरै भवपारोरे ॥ कोडू० ॥ १३॥ शोभ कहे में एह सरीखा गुरु ॥ पाम्यांलाख हजारोर ॥ श्रोषुज्य बिना भवभवमै पचियो ॥ ज्यभडभेजानी भाडोरे । कोइ० ॥१४॥ पाषंड मतमै काल करै तो ॥ मावै नर्क मंझारोरे॥'परमांधामी देव नर्कमें।
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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