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[१६] नारी ॥ गणि०॥६॥ बेद रितु गृह सशि भर अदवे सित तपा सप्तमी सारौ॥ सुजाणं मल्ल सुरौ गुण गायाँ । लाङणु सहर मंझारी गणिः ॥ ७॥ इति. ___ अथ श्री भिक्षणजी खामी के गुणांकी ढाल ॥ श्रावक सोमजी कृत श्री जिन आणी सरधाराखौ ॥धरि हंत ज्यं आचारो हैं। मिथ्यात रूपौयो मोटा मुनिखर मेट दियो अधकारोरे॥ को धारोरे २ श्री पुच्च शिक्को शिर धारीरे ॥ १॥ ज्य. को हरो रण मै जुमौ ॥ ज्यं अजियां बिच ब्हारो ॥ ज्य, जिन मत्तमैं पुज्य भिक्षण जी॥ पाषंड पोलण हारोरे । कोइ० ॥२॥ घाट घट्यो मिण शिको पड्यां बिन । कुण झेले हाथ मझारो ॥ ज्युं समकित शिक्को पुच दियो जब ॥ चाल्या तीर्थ च्यारोरे ॥ कोडू ० ॥ ३ ॥ जयं काष्ट को ज्याझ