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________________ 1 ( २४ ) 1 दातारोरे ॥ सर० ॥३॥ शौल रूप रथ सभ्यो सनौलो । तीन गुति असवारो ! ध्यान रूपी यै गजकर घूमै । बुद्धि तुरंग विचारोरे ॥ सर० ॥ ४॥ पंच महाव्रत सुभट बिकटचति । सैन्या सुयश चावो ॥ तपकौ तोप ज्ञान गोवासें । अन्य मत्तकों फटकारोरे ॥ सर० ॥ ॥ ५ ॥ सुमति रूप कस कमर कटारी । चम्यां खडग करधारो । जयना हुकी ढाल ढक थी । चत कर्म बिडारोरे ॥ सर० ॥६॥ बहु बिव मोह विकट दल ठेल । पाखंड पेलणहारो || सुत्र सिद्धांन्त बचन घन गरजत 'बायत जिम जल धारोरे ॥ सर० ॥७॥ जो भवि जन तोरा गुणगोसी । देसी पूठ संसारो ॥ कर्म खपावी शिवपद बरसो । करसी खेवी पारोरे ॥८॥ पैंसठ जेठ शुक्ल पक्ष बारस लाइं सहर मंकारी । जोरावर तुम चरणां मैं चित ॥ सरणांके आधारोरे ॥ सर० ॥ ॥ इति० "
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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