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________________ तिथ गुरुवारन गुण गावत हर्ष अपारजी। ॥ मा० ॥ १३॥ इति । पथ ऋषभ जिन सत्वन ॥ राग०॥ साहेब कैसे करूं तोय राजी॥ एहहरजसकी चालम ॥ देशी० ॥ ५ ऋषभ जिन कैसे कर तोयराजी ॥ पांचं चोर करे कुफराना मोह बड़ी है पाजी। क्ष० ए० नाभि नन्दन जगतक बंदन तुमको कैसे पाउ॥ कर्मों के संग फिर्म' भटकतो सव भव गोता खा॥ कष०॥१॥ में चेतन अनाथ प्रभुजी ॥ कर्म कुबुद्धि पति भारौ॥ तिणमें फिर कुगुरांभरमायो॥ भूल गयो सुधसारौ ॥ ष० ॥ २॥ अब कछु पुन्य पकूर प्रगट भयो॥ साचा सत्त गुरुपाया मुज ऊपर कृपा हदकोनी ॥ तोरा खरूप बतलाया ॥ ऋष० ॥ ३॥ एह संसार असार जि में ॥ तुज समर्ण सुखकारो॥ एही धार तुन
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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