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________________ ( १०७ ) मैं करू॥ हो अरज सुणो सिरतान ॥ स्त्रमा ॥ ७॥ कह कर जोड़ि मोड़ी हो। मन किंकर यां कदमां तणों॥ प्रभु दीज्यो लान निभाय ॥ उभय भवे सुख पाऊ हो सुभ दृष्टि चाहु नाथरी || हो मांगू गोद विछाय ।। खमा ॥८॥ आम भलो रवि आयोहो ॥ मै दर्शण पायो देवरों॥ हो जन्म चतार्थ थायः॥ टषि नयेचन्द प्रकासे हो। रितु राग अबद बिद म्हग सरे॥ हो चतुरदसौ चित चाय ॥ खमा ॥६॥ इति ॥ ढाल लिखते. वीर जिनेखर शुणज्योमोरी बीनतो एदेगी। म्हारवर्ष बधावी छापुर सैहरमा ॥ कोई घर घर मङ्गलाचार ॥ उमजो समुद्र श्रावण भाद्रव ॥ कोई हर्ष रया नर नार ॥ म्हारे ॥ ए.१॥ मुन्नचंद कुल में सूरज जगीयो । कोइ मेट तीन अंधार ॥ मात छोंगां जो मन हर्षो घणो । कोइ निरखी सुत दीदार ॥ म्हारे ॥२॥ भात कोठारी कुल्लमें दोपता। कोई चन्वन्त सुरभी दूध ॥
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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