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________________ ( १०२ । दूर पुलाय ॥ म्हारी ॥ ३ ॥ बहोत दिनोंकी पाश थौ ॥ से पूरण थई भान ॥ भानन्द भङ्ग मावै नहीं ॥ सरिया बञ्छित कान ॥ म्हारो० ॥ ४॥ सुखे विराजो खामजी ।। करो घणां उपगार ॥ सिंह निसा पूँजी महौ ॥ विनति करां बार बार ॥ म्हारी ॥५॥ ॥ इति ॥ अथ ढाल ७ सातमी गुरू म्हाराज विहार करै जव लुगांयांक गावनको ॥ राग बागां जाज्यो पिवजी थे निम्बु ल्याज्यों च्चारजी। एह गौतनी देशी० ॥ भिक्षण जौरा चेला दर्शन बैगा २ दिज्योनी ॥ बौनतड़ी अब धारो म्हां पर किरपा कोज्यो जो॥ एचां० ॥ पादनाथ पाद प्रवर ज्यं ॥ भिक्षुद्रण पंचम भारी जी ॥ मिथ्या तिम विडार ॥ आन ज्यं कियो उजारो नौ ॥ भि• ॥ १॥ मारग सुद्ध चलायो तिणने ।
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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