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________________ (५१) सूरत-यह शहर भी बड़ा हैं। यहां पर ६ जैन मदिर है। टेशनसे) में चंदावाडी नामकी धर्मशाला स्व० सेठ माणिकचंदजी की बनाई हुई है वहां ठहरें । दिगम्बर जैन का आफिस भी देखने योन्य है। बड़ौदा-जैन मदिर २ है । एक कन्याशाला भी है । देखने योन्य स्थान-जलकल, देवमन्दिर, वड़ावाग, चिडियाखाना राजमहल, राममहल, सोने और चांदी की तोपें, तालाव आदि हैं। ___ अहमदावाद-यात्रियोंके टहरनेकास्थान तीन दरवाजाके ननदीक प्रेमचन्द मोतीनंद बोर्डिंगमें धर्मशाला है यहापर दिगम्बर अनियों के मदिर २ हैं। एक बोकि है । देखने योग्य स्थान-स्वामी नारायण का मंदिर, पिंजरापोल, चिन्तामणिका श्वेताम्बर मंदिर, सांवर मतीनदी आदि हैं यहां कपटे बुननेकी बहुतसी मिलें है. कलकत्ता-ई. आई रेलवे बंगाल नागपुर रेलसे आनेवालीको हायडा स्टेशनका व भासाम तरफसे ईस्टर्ने बेंगॉल रेलसे आनेवालेको सालदाह स्टेशनका टिकट लेना चाहिये. यह शहर हुगली नदी के किनारेपर है. स्टेशनसे आठ आनेमें घोड़ागाड़ी किराया करके करीव १ मील दूर हेरीसन रोडपर सेठ. रामकिसनदास हरकिसनदास व वा. सरजमल नीकी व एक दो अन्य धर्मशाला उस जगहपर है. जहां सुभीता होवे वहा ठहरना चाहिये. ___घ एक धर्मशाला शामाबाई गलीमें सेठ. मोतीचंद लाभ चदनीकी बनवाई है उसमें भी ठहर सकते है.
SR No.010325
Book TitleJain Tirth Yatra Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Shivlal
PublisherDahyabhai Shivlal
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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